तुम्हारा कोमल और नरम सा स्पर्श मुझे कोई तकलीफ़ नहीं देता... तुम्हारा कोमल और नरम सा स्पर्श मुझे कोई तकलीफ़ नहीं देता...
उसका यह जीवन भी, इस वसंत से भी ज्यादा प्रमुदित हो। उसका यह जीवन भी, इस वसंत से भी ज्यादा प्रमुदित हो।
जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है। जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है।
है वो हम सबकी रचनाकार, परिपूर्णता की परिचायक है वो हम सबकी रचनाकार, परिपूर्णता की परिचायक
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यही जीवन का सार है। यही जीवन का सार है।